बिहार में अपराधी से नेता बने चेहरों की बढ़ती ताकत: लोकतंत्र पर खतरा या जनता की पसंद?Criminal Converted Politician in Bihar

Criminal Converted Politician in Bihar

पटना, अक्टूबर 2025:बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025) की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन एक बार फिर राज्य की राजनीति में अपराधी से नेता बने चेहरों (Criminal Converted Politician in Bihar) का बोलबाला देखने को मिल रहा है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा अब यह है कि जनता ऐसे उम्मीदवारों को स्वीकार करेगी या बदलाव का रास्ता चुनेगी।राज्य में अपराध और राजनीति का गठजोड़ नया नहीं है। 1990 के दशक से ही बिहार की सियासत में ऐसे नेताओं का दबदबा रहा है, जिनके खिलाफ हत्या, रंगदारी, अपहरण, और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। इन नेताओं ने अपने प्रभाव, जातीय समीकरण और स्थानीय पकड़ के जरिए राजनीति में प्रवेश किया और धीरे-धीरे “नेता” की पहचान बना ली।

राजनीति में अपराध का गहराता असर

चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस बार के बिहार चुनाव में प्रमुख दलों—राजद, जेडीयू, भाजपा और कांग्रेस—के कुल उम्मीदवारों में से लगभग 40 प्रतिशत पर किसी न किसी आपराधिक मामले का आरोप है। इनमें से कई उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनके खिलाफ हत्या या फिर गंभीर अपराधों के केस चल रहे हैं।पूर्व पुलिस अधिकारी और सामाजिक विश्लेषक अरविंद ठाकुर कहते हैं, “बिहार में अपराधी छवि वाले नेताओं का प्रभाव इसलिए बढ़ा क्योंकि उन्होंने लोगों के डर को अपनी ताकत में बदला। जनता उन्हें ‘समस्या का समाधान’ समझने लगी।” (Criminal Converted Politician in Bihar)

जनता की पसंद या मजबूरी?

मोकामा, सिवान, और गया जैसे इलाकों में बाहुबली नेताओं का प्रभाव अब भी कायम है। स्थानीय मतदाता खुलेआम कहते हैं कि ऐसे नेता भले अपराधी हों, लेकिन “काम कराने वाले” हैं।मोकामा के एक मतदाता का कहना है, “सरकारी दफ्तरों में काम महीनों लटका रहता है, लेकिन नेता जी का फोन जाए तो तुरंत काम हो जाता है। इसलिए हम उन्हीं को वोट देते हैं।” (Criminal Converted Politician in Bihar)

पार्टी की रणनीति और सियासी गणित

राजनीतिक पार्टियां जानती हैं कि ऐसे उम्मीदवारों की पकड़ जमीनी स्तर पर मजबूत होती है। इसलिए टिकट वितरण में अक्सर ‘विजय संभावनाओं’ को प्राथमिकता दी जाती है, न कि उम्मीदवार की छवि को। एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय झा कहते हैं, “बिहार में टिकट देने का पैमाना नैतिकता नहीं, जीतने की क्षमता है। जब तक पार्टियां इस मानसिकता को नहीं बदलेंगी, तब तक अपराधी राजनीति से बाहर नहीं होंगे।” (Criminal Converted Politician in Bihar)

कानून और सुधार की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने बार-बार यह सिफारिश की है कि गंभीर आपराधिक मामलों में फंसे नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जाए। लेकिन कानूनी खामियों और राजनीतिक दबाव के चलते ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
2025 में भी ऐसे नेताओं की संख्या में कमी नहीं आई है। (Criminal Converted Politician in Bihar)

युवा मतदाताओं की नई सोच
हालांकि अब बिहार के युवाओं में यह समझ बढ़ रही है कि अपराधी राजनीति का हिस्सा नहीं बन सकते। सोशल मीडिया अभियानों और नागरिक संगठनों के प्रयास से अब “क्लीन पॉलिटिक्स” की मांग तेज हो रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक नीरज वर्मा कहते हैं, “अगर 2025 का चुनाव बदलाव की दिशा में जाना है, तो जनता को यह तय करना होगा कि वे अपराधी नेता नहीं, ईमानदार प्रतिनिधि चुनें।” (Criminal Converted Politician in Bihar)

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