पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर चिराग पासवान (Chirag Paswan) और एनडीए (NDA) की equation चर्चा में है। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) चिराग की लगातार बढ़ती “चिख-चिक” से खासे नाराज़ हैं। अब चर्चा यह है कि नीतीश कुमार पशुपति पारस (Pashupati Paras) को एक बार फिर एनडीए में शामिल करवाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर रस्साकशी तेज हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान लगातार 43 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं। चिराग का तर्क है कि उनकी पार्टी के पास लोकसभा में 5 सांसद हैं, इसलिए विधानसभा में भी उनकी भागीदारी उसी अनुपात में होनी चाहिए।(Nitish Kumar upset with Chirag Paswan’s ‘screaming’)
चिराग की बढ़ी मुश्किलें, नीतीश ने खींची लकीर
सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार ने बीजेपी नेतृत्व को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि जदयू “सीटिंग सीटें” किसी हाल में नहीं छोड़ेगी। यहां तक कि वे सीटें भी नहीं जहां पिछली बार जदयू दूसरे स्थान पर रही थी।जदयू का तर्क है कि पिछली बार चिराग पासवान की वजह से उनके उम्मीदवारों को नुकसान हुआ, इसलिए अब कोई रियायत नहीं दी जाएगी।राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि नीतीश कुमार ने बीजेपी से कहा है कि अगर चिराग का “नखरा” ज़्यादा बढ़े तो वीआईपी पार्टी या राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (पशुपति पारस गुट) से बात की जाए। यह संकेत साफ है कि चिराग पासवान पर अब एनडीए के भीतर दबाव बढ़ाया जा रहा है।(Nitish Kumar upset with Chirag Paswan’s ‘screaming’)
मोदी के हनुमान या एनडीए के बागी?
चिराग पासवान खुद को आज भी “मोदी का हनुमान” (Modi ka Hanuman) बताते हैं, लेकिन उनके तेवर एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। एक तरफ बीजेपी के शीर्ष नेता उनके आवास पर जाकर उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ चिराग किसी समाधान पर राज़ी नहीं दिखते।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग की यह रणनीति उन्हें सीट बंटवारे में बढ़त दिला सकती है, लेकिन अगर जदयू और बीजेपी ने मिलकर पारस को आगे बढ़ाया, तो यह चिराग के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।(Nitish Kumar upset with Chirag Paswan’s ‘screaming’)
पारस फैक्टर से बदल सकता है समीकरण
नीतीश कुमार की रणनीति के केंद्र में अब पशुपति पारस का नाम तेजी से उभर रहा है। माना जा रहा है कि पारस को दोबारा एनडीए में लाकर नीतीश, चिराग की बढ़ती “महत्वाकांक्षा” पर अंकुश लगाना चाहते हैं।अगर पारस को एनडीए में जगह मिलती है, तो बिहार की राजनीति में एक बार फिर लोजपा परिवार की दरार गहराई जा सकती है।(Nitish Kumar upset with Chirag Paswan’s ‘screaming’)
राजनीतिक संदेश साफ
नीतीश कुमार का यह कदम सिर्फ सीट बंटवारे की राजनीति नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है — एनडीए में “वन मैन शो” की जगह नहीं है।वहीं, चिराग पासवान के समर्थक कहते हैं कि वे बिहार में पार्टी को “नई ताकत” के रूप में उभरते देखना चाहते हैं और इसके लिए “समझौता राजनीति” अब उनके एजेंडे में नहीं है।बिहार में एनडीए का समीकरण फिलहाल अस्थिर दिख रहा है। एक तरफ नीतीश कुमार की रणनीतिक चालें, दूसरी तरफ चिराग पासवान का आत्मविश्वास, और बीच में बीजेपी की मध्यस्थता—ये सब मिलकर राज्य की राजनीति को और दिलचस्प बना रहे हैं। आने वाले हफ्तों में यह साफ हो जाएगा कि क्या चिराग पासवान एनडीए में बने रहेंगे, या फिर पशुपति पारस की वापसी नए राजनीतिक समीकरण को जन्म देगी।(Nitish Kumar upset with Chirag Paswan’s ‘screaming’)

