जयपुर, 6 अक्टूबर 2025 — राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्यों को निर्देश दिया है कि वे अपनी कानूनी याचिकाओं में इस्तेमाल किए जा रहे ‘महाराज’ (Maharaj) और ‘प्रिंसेस’ (Princess) जैसे उपसर्गों को हटाएं, अन्यथा उनकी 24 साल पुरानी याचिका को खारिज (Dismissed) कर दिया जाएगा।न्यायमूर्ति महेंद्र कुमार गोयल (Justice Mahendra Kumar Goyal) ने सोमवार को यह निर्देश देते हुए कहा कि “राजशाही विशेषाधिकार (Royal Privileges)” भारत के स्वतंत्र होने के बाद समाप्त हो चुके हैं, ऐसे में इन उपाधियों का उपयोग अब संवैधानिक रूप से अनुचित (Constitutionally Inappropriate) है।(Rajasthan High Court News | Remove ‘Maharaj’ and ‘Princess’ prefixes from legal petitions | Jaipur Royal Family Case)
🔹 मामला क्या है? (Background of the Case)
यह मामला वर्ष 2001 में दायर याचिकाओं से जुड़ा है, जिसे स्वर्गीय जगत सिंह (Late Jagat Singh) और पृथ्वीराज सिंह (Prithviraj Singh) के कानूनी वारिसों ने दाखिल किया था।इन याचिकाओं में उन्होंने जयपुर नगर निगम (Jaipur Municipal Corporation) द्वारा लगाए गए हाउस टैक्स (House Tax) की वसूली को चुनौती दी थी।हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि याचिकाकर्ताओं ने अपने नामों के आगे ‘महाराज’ और ‘प्रिंसेस’ जैसे शब्द जोड़ रखे हैं, जो अब भारतीय संविधान (Indian Constitution) के प्रावधानों के तहत मान्य नहीं हैं।(rajasthan high court)
🔹 कोर्ट की सख्त टिप्पणी (Court’s Observation)
न्यायमूर्ति गोयल ने कहा —
“याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह का समय दिया जाता है कि वे अपनी संशोधित याचिका (Amended Petition) में से ‘महाराज’ और ‘प्रिंसेस’ जैसे उपसर्ग हटाएं, अन्यथा मामला 13 अक्टूबर को खारिज कर दिया जाएगा।”
उन्होंने आगे कहा कि “राजशाही विशेषाधिकार दशकों पहले समाप्त हो चुके हैं। अब यह समय है कि सभी नागरिक समानता के सिद्धांत (Principle of Equality) को स्वीकार करें।”(rajasthan high court)
🔹 संवैधानिक आधार (Constitutional Basis)
हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363A (Articles 14, 18, 363A) के तहत ऐसे राजकीय संबोधन या उपाधियाँ पूर्णतः निषिद्ध (Prohibited) हैं।
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Article 14 – सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है।
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Article 18 – राज्य द्वारा किसी भी प्रकार की उपाधि (Titles) देने पर रोक लगाता है।
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Article 363A – राजघरानों के विशेषाधिकार और मानद उपाधियाँ समाप्त करता है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि “संवैधानिक न्यायालयों (Constitutional Courts) और सार्वजनिक कार्यालयों (Public Offices) में ‘राजा’, ‘नवाब’, ‘राजकुमार’ जैसे शब्दों का प्रयोग असंवैधानिक है।”(rajasthan high court)
🔹 पहले भी उठ चुकी है यह चिंता (Previous Rulings)
यह पहला अवसर नहीं है जब किसी अदालत ने इस मुद्दे पर टिप्पणी की हो।
2022 में राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच और जोधपुर मुख्य पीठ (Jodhpur Bench) दोनों ने ही ऐसे उपसर्गों के उपयोग पर आपत्ति जताई थी।इसी तरह, 2015 में मध्यप्रदेश विधानसभा (Madhya Pradesh Assembly) ने निर्णय लिया था कि किसी भी नेता या जनप्रतिनिधि के नाम के साथ ‘महाराज’, ‘राजा’, ‘श्रीमंत’, ‘कुंवर’ जैसे उपसर्ग या प्रत्यय नहीं जोड़े जाएंगे। इसका उद्देश्य समाज में समानता और नामों में एकरूपता (Uniformity) लाना था।(rajasthan high court)
🔹 राजशाही का अंत और समानता की भावना (End of Royal Privileges)
भारत की आज़ादी के बाद 1947 में लगभग 600 रियासतों (Princely States) के राजाओं और नवाबों ने अपने विशेषाधिकार खो दिए थे।राजशाही का अंत होने के बावजूद, कुछ परिवारों में आज भी सामाजिक प्रतिष्ठा के तौर पर ये उपसर्ग जारी हैं, जिन्हें अब अदालतें लोकतांत्रिक भावना (Democratic Spirit) के खिलाफ मान रही हैं।(rajasthan high court)
🔹 आगे की कार्रवाई (Next Step)
कोर्ट ने 13 अक्टूबर की अंतिम तिथि तय की है। यदि याचिकाकर्ता समय पर संशोधित याचिका दायर नहीं करते हैं, तो मामला 24 वर्षों बाद भी अदालत से खारिज (Dismissed After 24 Years) हो जाएगा।(rajasthan high court)

